मलय के झोंके
मलय के झोंके
धीरे धीरे बहते महसूस किया
ताज़ा मलय के झोंको को
सुख देकर, झकझोर रहे जो
तपती आग जलाने को
फूल फल से सींच जिन्हें
जीवन देता तरु बेचारा,
काट काट कर उसकी टहनी,
मानव भूख मिटाता है,
खिलने से पहले,जिन फूलों को,
देवों पर चढ़ाया है
बागों का रूप बिगाड़ वह,
पत्थर को सजाता है,
मन में पलते पाप तरह तरह के,
ऊपर से मन यूं लहराता है,
बसंत बना ऋतुराज़,
हुआ न ऐसा मौसम कोई जग में,
पूजा पाठ व्रत उपवास करके
माँ शारदे को बुलाया है,
संयम कहाॅं कब किसमें,
देर तक ठहर कभी पाया है।
तभी तो बासंती पवन नें सहलाया है
इस मौसम में महुआ संग मन भी बौराया है !