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Disha Singh

Tragedy

4  

Disha Singh

Tragedy

मजदूर दिवस

मजदूर दिवस

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झोंक देते है अपनी सारी मेहनत ,

उन हाथों में ऐश -ओ- आराम की 

लकीर नहीं होती,

ज़िंदगी भर उनकी संघर्ष चलती रहती,

कड़ी धूप, नंगे पांव ,

पसीना बहाते जूझते हैं,


उन घरों के छत से तारे दिखाई देते है,

जिम्मेदारी का बोझ उठा कर लादे अपने कंधे में,

परेशानियों का सिखंज दिखे उनके माथे में ,

गरीबी और लाचारी ,

बीमारियों का गहरा असर ,


जितनी ज्यादा धैर्य उतना उनका लम्बा सफ़र ,

पुराने कपड़ों में त्यौहार की ललक ,

हर घड़ी सीखते नये सबक ,

जैसी भी परिस्थिति हो खुद को आदी कर लेते है ,

बिन खाये अपने परिवार को संभालते है ,


क्या मौसम और क्या महीना,

उन्हें तो है हर कमियों को झेलना,

कैसे रुकेंगे वो ,

जो जानते है ,

मेहनत ही उनकी पूंजी है ,

और यही जीवन में जरूरी है।

            


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