लेखक
लेखक
लिखने को बहुत कुछ है ,
पर कहाँ से शुरु करें ,
सफ़ेद पन्नों पे कुछ अपने विचार प्रस्तुत करें ,
जो अपने शब्दों में हमारी मन की बात कह जाये
हम जो सोचें , वो लिखते ही चले जाये
तज़ुर्बा से उनको कोई न गिला है
लेखक ने तो हर बेज़ुबा को सहजा है
जो हम बोल न सके
वो बेहतर लिख देते हैं
जस्बात चाह के भी न दिखाना चाहें
वो पहचान लेते हैं
हर इंसान अपनी ज़िंदगी का लेखक है
संघर्ष जीवन के रंगों का भरमार है
लेखक हमेशा कुछ न कुछ लिखने को तैयार रहता है
मगर मन ही मन डरता रहता है
इस भीड़ में कोई उसका मज़ाक न बना दे
इसलिये तो वो क़िताबों में सहेजता है
जो उन्हें नहीं जाने
वो उनके किताबों से प्यार कर बैठते है
बोल भले उनके हो पर वो हर एहसास से जोड़ता है
बया ऐसे करे जैसे नदियों की धारा हो
शांत ऐसे रहे जैसा कोई गहरा समंदर हो
खूबसूरत की वाहवाई बेसक कुरूप के ताजे न हो
शब्दकोश का बस्ता लिये,
घूमे मनचले जैसे वो हो ,
लेखक तो अपने मनमौजी ही समझे
जो महसूस करये दूसरों को
बंद लिफाफों में , गाली के दीवारों में
कुदरत की गोद में , तलाश लेते हैं
अपने सुनहरे शब्दों से दिल जीत जाते हैं।।