मिट्टी के घर
मिट्टी के घर
जिंदगी खेल- खेल में, मिट्टी के घर बनाती है।
और दूसरे ही पल, गिरते ही, जिंदगी बदल जाती है ।
जिंदगी खेल -खेल में, मिट्टी के घर बनाती है।
कितनी हसरतों से, सहेज कर सपनों को, महलों को धीरे -से थपथपाती है।
नन्ही -सी एक ठेस से, रेत -सी जिंदगी की तस्वीरें बदल जाती है।
जिंदगी खेल- खेल में, मिट्टी के घर बनाती है।
हर बार बिखर के, फिर से, सपने सहेजती है।
जिंदगी के खेल में, रेत- सी कितनी बार, बनती और बिगड़ती है।
लेकिन यह खेल, फिर भी...कहां छोड़ती है।