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Arunima Bahadur

Action

4  

Arunima Bahadur

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महत्वाकांक्षा

महत्वाकांक्षा

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महत्वाकांक्षाओं का कुचक्र ,

चक्रव्यूह सा उलझाता हैं।

एक के बाद एक नई,

इच्छाएं देता जाता है।

सोचता रहता मनुज सदा,

ये सुख का आधार हैं,

इसके बिना जीवन तो,

बस होता निराधार हैं,

हर पल फंस इच्छाओं में,

वह क्या से क्या हो जाता है,

जो न पूर्ण होता कभी,

ऐसा जीवन बन जाता है।

न होता एकाग्र मन तब,

न दृष्टा का भाव आता है,

फंस कर चक्रव्यूह में यारों,

जीवन अंधकारमय हो जाता ह,

जाग लो आज जरा मेरे यारों,

खुद से खुद की यात्रा को

जो सुख महत्वाकांक्षाओं ने छीना,

चलने अब उस यात्रा को,

केवल अंतर्जगत की यात्रा से,

जीवन खुशहाल हो जाता है।।


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