महफिल
महफिल


बदनाम कर दिया फिर से,
इस महफिल ने आज,
बहुत संभाले हमने,
अपने दिल के ज़जबात।
कभी अकेले इस दिल को,
टटोल कर सोचा ,
क्या सच में हम इतने बुरे हैं,
जो बन गए एक बात।
जो अलहदा बैठे,
तो भी तंज कसे,
जो मिल के हम हँस दिये,
तो रच दी किताब।
इतने सारे मुँह थे,
जिनके बीच बने मोहरा,
वो कब बाज़ी मार गए,
हम समझे ना ये बात।
एक प्यादा हमने भी चला,
जो पिट के गिर गया,
वो बादशाह इस खेल के,
हम समझे अपनी औकात।
बदनाम कर दिया फिर से,
इस महफिल ने आज,
बहुत संभाले हमने,
अपने दिल के ज़जबात।।