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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

4.5  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

महंगाई

महंगाई

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346


अरे महंगाईरानी तू बड़ी बेशरम है

मुझे लगती तू सुरसा की बहन है


दिन-प्रतिदिन तू बढ़ती जा रही है,

तू तो छीन रही सबका सुख-चैन है


क्या अमीर लोग,क्या गरीब लोग

सबको दे रही तू तो आंसू सप्रेम है


अरे महंगाई तू तो बड़ी बेशरम है

मुझे लगती तू सुरसा की बहन है


अमीर तो फिर भी साखी जी लेंगे,

महगांई के बोझ तले भी पी लेंगे,


गरीबों का बड़ा दुःखी हुआ रैन है

बिना वर्षा ही बरसता उनका नैंन है


अरे महंगाईरानी तू बड़ी बेशरम है

मुझे लगती तू सुरसा की बहन है


कपड़ा,मकान तो वो भूल ही गये है,

पेट पे भी डाल रहे पत्थर की ट्रेन है


ख़ुदा तू ही हम पर अब रहम कर,

ये महंगाईरानी तो बड़ी बेरहम है


ये हर जिंदगी को आज तोड़ रही है,

अब तू दम घोटने वाली हुई देन है


अरे महंगाईरानी तू बड़ी बेशरम है

मुझे लगती तू सुरसा की बहन है


ये महंगाई जाने कब खत्म होगी,

ये इंतजार करना अब बंद कर दो,


अपनी मितव्ययिता से ही होगा,

महंगाई डायन का खत्म गेम है


फ़िझुल का खर्चा तुम बंद करो,

तब ही महंगाई पर लगेगा बेन है


ये महंगाईरानी यूँ छिप जायेगी,

जैसे भोर होते मिटता निशा-रैन है!




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