महीष
महीष
राक्षस राजा था
राजकुमारी पर था पहरा
एक दिन
एक राजकुमार
आया भ्रमण को
इस देश में
राजकुमार का वाहन
था एक भैंसा
एक दिन राजकुमारी
निकली थी पूजन को
राह में मिला
राजकुमार उसको
दोनों एक दूसरे को
देखते रह गए
राजकुमारी की आंखों में
वेदना भरी थी
राजकुमार ने संकेत दिया
आऊंगा मैं लेने
तब से राजकुमारी
द्वार पर खड़ी
हर दिवस बीते
कई वर्ष सरीखे
पर प्रतीक्षा खत्म हुई
राजकुमार आया
राक्षस से लड़ते लड़ते
हो गया वह घायल
किसी तरह व लौटा
अपने घर
राजकुमार व्यथित था
राजकुमारी को न ला पाया
भैंसा सब समझता था
वह चला राजकुमारी देश
महल में दाखिल हो
राजकुमारी को बिठा
दौड़ने लगा सरपट सरपट
राक्षस को जब पता चला
रास्ते बीच ही रोका
जाने नहीं दूंगा
तुम यहीं रुक जाओ
भैंसा था बहुत बलवान
राक्षस से युद्ध किया
जीत कर लाया
राजकुमारी को
राजकुमार के पास
राजकुमार का मन हर्षाया
भैंसे को दी शाबाशी
दोनों मिल गए आज
जोड़ी जैसे ईश्वर ने बनाई ।
