महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप
चितौड़ भूमि के हर एक कण से, हमनें सुनी कहानी थी
वीर अनोखा महाराणा था, शूरवीरता, जिसकी निशानी थी।
निहत्थे शत्रु पर वार न करना, ये बात माँ की मानी थी
एक म्यान में दो तलवार सदा, ये खूबी बडी़ निराली थी।
सभी धर्मों में देखी एकता, ऐसी, टुकड़ी वीर जवानों की
धर्म-जाति का भेदभाव न मन में, नीतियाँ सुंदर,बड़ी प्यारी थी।
योद्धाओ का घर जंगल होता, पहचान बनी साहसी वीरों की
महल व सुख-वैभव त्यागे, अपनी जनता की सेवा जो करनी थी।
कला प्रतिभाओं का मान हमेशा, नींव सहिष्णुता की डाली थी
नीतियों के पोषक महाराणा जी, हिन्दू राजाओं की शाक बचानी थी।
न डरना, न डराना किसी को, कूटनीति की राह अपनानी थी
धौंस दिखाता अकबर रह गया, यहाँ बात थी शीश झुकाने की।
आसमान छु रही मुगलों की शक्ति, न हार उन्होने मानी थी
भूखे-प्यासे भटके वनों में, थी अटल प्रतिज्ञा, मुगल दरबार में न जाने की।
चेतक की हम बात करे क्या, निष्कलंक जिसकी कहानी थी
प्राण न्यौछावर कर दिये अपने, पर आँच न प्रताप को आने दी।
धूल चटा दी शत्रु की सेना, शक्ति अनकही,अंजानी थी
अचंभित था अकबर भी उससे, जिसके जग जीतने की तैयारी थी।
आँसू बहाये अकबर ने भी, जब सूचना वीरगति की जानी थी
तेरे जैसा न वीर जहां में, महिमा प्रताप की गाई थी।
चितोड़ भूमि के हर एक कण से, हमनें सुनी कहानी थी,
वीर अनोखा महाराणा था, शौर्य, वीरता जिसकी निशानी थी।
