मेरी ज़िंदगी
मेरी ज़िंदगी
नादान हूँ मैं, नादानियां बार बार करती हूं।।
आप कुछ कहो, कुछ और ही करती हूँ।।
पर प्यार भी आपसे बहुत ही करती हूँ,
अकसर ही नाराज़ करती हूँ,
चन्द पंक्तियों से ये वादा भी तो करती हूँ।।
आप जब हमसे रूठकर बात नहीं करती हो, तो
ऐसा लगता है ....
मानो.....
कहीं खोए हैं मोती मेरे,
कहीं गुमसुम हैं धागे भी।
जाने तन्हा क्यों है आसमां,
और सूनी है जमीनें भी।।
कोशिश-ए-तामीर कुछ रूठी हैं हमसे,
चाहत-ए-दास्तां कैसे सुना दें हम।
पर बेशक़ प्यार इतना था,
कि साँसे भले ही थम जाएं!
हमारी साँसे भी ,आपकी हो जाएं
पर मम्मा ये बेशकीमती मुस्कान
कभी फीकी ना पड़ें।।