मेरी फरिश्ता
मेरी फरिश्ता
मैंने फरिश्ते को तो कभी देखा नहीं ,कभी !
लेकिन फरिश्ते के रूप में मैंने तुझे पाया है।
मैंने स्वर्ग की परी का दीदार किया नहीं ,कभी !
पर नटखट परी के रूप में तुझे पाया है।
जो मैंने कहीं नहीं देख पाया !
वो तेरी आँखों में रोज देखता हूँ।
मैं हर विरान से विरान जगहों पर गया
लेकिन बचके निकल आया आखिरकार !
लेकिन तेरी नयन के कानन में खो गया,
मैं ! मैं खोकर भी खुद से मिल गया !
ऐसा नहीं कि तुम केवल मेरी सौंदर्य की साधन हो !
तुम मेरी अर्धांगिनी हो।
कदम से कदम मिलाकर चलने वाली
हमसफ़र हो तुम मेरी !
जो मैंने कभी किसी से आशा नहीं की !
न किसी से उम्मीद की !
न किसी पर भरोसा किया !
पर तेरी समर्पण ने मेरी सरगम को नई
कलात्मक रंग देकर मेरी जिंदगी संवार दी।
मैंने कभी किसी के आगे झुका नहीं कभी !
लेकिन तेरी प्रेम रूपी विनम्र संगीत के स्वर के आगे,
मैं नित - नीत झुकता हूँ।
अब तू ही बता मेरी हमसफ़र
तू फरिश्ते से कम है क्या ?