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Brijlala Rohan

Romance Classics Inspirational

4  

Brijlala Rohan

Romance Classics Inspirational

मेरी फरिश्ता

मेरी फरिश्ता

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मैंने फरिश्ते को तो कभी देखा नहीं ,कभी !            

लेकिन फरिश्ते के रूप में मैंने तुझे पाया है।           

मैंने स्वर्ग की परी का दीदार किया नहीं ,कभी !         

पर नटखट परी के रूप में तुझे पाया है।      

       

जो मैंने कहीं नहीं देख पाया !

वो तेरी आँखों में रोज देखता हूँ। 

मैं हर विरान से विरान जगहों पर गया

लेकिन बचके निकल आया आखिरकार !


लेकिन तेरी नयन के कानन में खो गया,

मैं ! मैं खोकर भी खुद से मिल गया !                

ऐसा नहीं कि तुम केवल मेरी सौंदर्य की साधन हो ! 

तुम मेरी अर्धांगिनी हो।


कदम से कदम मिलाकर चलने वाली 

हमसफ़र हो तुम मेरी ! 

जो मैंने कभी किसी से आशा नहीं की !

न किसी से उम्मीद की !


न किसी पर भरोसा किया !

पर तेरी समर्पण ने मेरी सरगम को नई

कलात्मक रंग देकर मेरी जिंदगी संवार दी।

मैंने कभी किसी के आगे झुका नहीं कभी !

लेकिन तेरी प्रेम रूपी विनम्र संगीत के स्वर के आगे,

मैं नित - नीत झुकता हूँ।


अब तू ही बता मेरी हमसफ़र

तू फरिश्ते से कम है क्या ?


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