मेरी मर्जी
मेरी मर्जी
यह बेचूंगा, वो बेचूंगा
वो बेचूंगा और वो भी
अपने घर में चोरी करके
खूब मचाऊँ शोर मेरी मर्जी
गागर बेचूंगा , सागर बेचूंगा
बेचूंगा फल- फूल, पेड़ पौधे
झील झरने और खेत खलियान
सब कुछ बेचूंगा रोक सके तो रोक लो
क्या हैं औकात तुम्हारी
कौन हो तुम रोकने वाले ?
यह सज्जन को क्या
तकलीफ हैं भाई ?
तुम सब बिलकुल बेकार हो
अपना हित जानते नहीं हो
मैं कौन हूँ पहचानते नहीं हो
कुछ ना कहो, चुप रहो बिलकुल खामोश
अच्छे दिन आयेंगे कहो
कहने में तेरा क्या जाता हैं ?
बेमौत मारे जाओगे यार
हमारी बिल्ली हमको म्याऊँ
चुप रहो गुलामों, शरण में आओ
हम कहे तो भोंको, हम कहे तो काँटों
पट्टा पहन के पड़े रहो किसी कोने में
जब तक बुलावा नहीं आता ...
