मेरी कविता
मेरी कविता
शायरों के दिल की धड़कन,
जो कलम से, कागज पे, उतरती है !
है कविता, मेरी आरजु की तलाश,
आज भी, हर पल, नयी लगती है !
लब्जों को अंगार बना के,
हरदम मजलुमों की आवाज बनती है !
ज़ख्मों को सहलाती हुई,
दिल के मेरे घाव भर देती है !
प्रेम की है तू दिवानी,
मेरे रोम रोम में बसी हुई है !
समाँ बंधाती, गीतों की झंकार,
मेरी रूह को छूकर जाती है !
हर एक, क्षय में गुजरती हुई,
रंगरूप अपना बदलती रहती है !
समय की माँग को भाँपकर,
शायर की सोच से ढलती है !
दर्द सिमट लेती है सारा और तन्हाई,
अपने लब्जों से, दूर करती है !
बेजुबानों की आवाज, बन के
न्याय के दरवाजे पे दस्तक देती है !
समाज, दुनिया की हर बिसात पर,
लब्जों के हथियार से लड़ती है !
हल का सेहरा बंधे ना बंधे,
मेरी मुश्किलें आसान करती है !