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पहली साँस

पहली साँस

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इस धरातल पर,

जब हम ने,पहली साँस ली

वो जगह ,

हमें सदा ही, खयाल में,

रहता है!


अब उस दवाखाने की,

इमारत पुरानी हो गई है,

और आज उस काटेज हास्पिटल

के रूम का हाल बदल गया है,

समय एक जैसा नहीं रहता।


उस वक्त वो दवाखाने के

स्पेशल रूम में गिना जाता था,

आज उस के बाद ,

अब नयी इमारत भी बगल में हो गयी है,

बाहर भी , हरी फुलवारी

और पेड़ लगे हैं !


आज़ादी के  बाद,

हमारी पीढ़ी इस दुनिया में आयी

और उस रूम में,

हमारे बाद कितनो ने ही

जन्म लिया होगा,

इस जगह पर मेरी,

पहली किलकारी गूंजी होगी,

उस रूम में एक,

खिड़की थी,

और एक लोखंड की,

चारपायी थी ...

उस रूम में ही मेरी

आँखो ने सूरज की,

किरणों का सामना किया होगा।


हमारा जब जन्म हुआ होगा,

मेरे घरवालों का खुशियों का,

ठिकाना न रहा होगा,

उगते सितारे लिखकर,

अल्बम में फोटो सजाये होंगे,

सबने प्यार दुलार से,

मुझ को खिलाया होगा,

और मैंने सुसू कर के,

उन को भिगाया होगा।


हमारे पैदा होने के पहले तक,

प्रसूती घर में ही,

दाई बुलाकर की जाती थी

उस समय की प्रथा,

ऐसी ही थी !

पर हम जो भाग्यवान ठहरे,

दवाखाने में पैदा हुए थे।


माँ कहती थी,

जब हम पैदा हुए थे,

तब वो बहुत बीमार,

हो गयी थीऔर,

हमें कपिला नामक,

गौ का दुध पिलाया गया था।


मेरे उस जन्मस्थान के,

उस विशेष रूम में

हमारे इस दुनिया से,

अलविदा करने के बाद,

हमारे नाम की,

तख़्ती लगायेंगे कि नहीं

ये हम आज तो,नही बता सकते,

पर उस रूम में ही हमने

पहली साँस भरी थी,

ये मेरा साहित्य पढ़ने वाले

वाचक,जरूर बतायेंगे,

की फलां फलां साहित्यकार

यहाँ पैदा हुए था।


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