मेरी कविता सबसे प्यारी
मेरी कविता सबसे प्यारी
सब आज कहते हैं मेरी कविता सबसे प्यारी है
जितनी भी कविता हैं उसमें सबसे न्यारी है
गर लोग को यह पता होता अगर
जितने भी प्रेयसी हुई,
उसमें हमारी सबसे व्यापारी है !
वक्त और हालात सब उसके सिपाही हैं
छल-छलावा सब उसके अधिकारी हैं
उसकी सहेली मंथरा वह खुद मंदोदरी है
बिन कहे सब भाव कह दे ऐसी पहेली है !
धन-दौलत, शोहरत प्रेमी उसको न्यारे हैं
और हम जैसे कवि उसके लिए नक्कारे हैं
हम यूं ही ऐसे पीड़ा की जोत निरंतर जलाएं
गे
उसकी हर अनुभूतियों की
दीए में गम का आंसू बहाएंगे !
इतने प्रपंचों के बाद भी
खुद को वह सत्यवती समझती हैं
इश्क के बाजार में खुद को बेचकर
हमको अपना प्रेमी समझती है !
जब कभी उनको याद कर दो बातें कह देता
तब लोग कहते हैं यह एक शानदार कविता
उनको क्या पता हमारे मन में कितनी उलझन है !
तब भी सब आज कहते हैं
मेरी कविता सबसे प्यारी है
जितने भी कविता है उसमें सबसे न्यारी हैं।