मेरी खामोशियाँ
मेरी खामोशियाँ
बड़े नादां थे जो कभी हमको
न समझ आते थे अल्फ़ाज़ भी,
तज़ुर्बे वक्त ने वो दिए हमको कि
अब समझने लगे हैं खामोशियाँ ।
ज़ुबां चुप ही रहें तो गनीमत समझो ,
कई राज़ गहरे दबाए बैठी हैं ये खामोशियाँ ।
कान लगाओ, ज़रा कोशिश तो करो, सुनने की,
बहुत शोर, बहुत शोर करती हैं ये खामोशियाँ ।
यादों की कसक हवा से जाने क्या कहती है ,
मदहोशियों में गुनगुनाने लग जाती हैं ये खामोशियाँ ।
अंधेरे रास जिन्हें आ जायें, उजाले मायने नही रखते,
वो फिर बोला नहीं करते ,जिन्हें भा जाती हैं ये खामोशियाँ ।
कुछ दर्द ऐसे हैं जो ये आवाज़ छीन लिया करते हैं ,
यूँ बेवजह दस्तक नहीं दिया करती हैं ये खामोशियाँ ।
इस कदर अजनबी हो गया ये शहर अनजान,
रुसवाईयों से बेनूर और बदरंग हुई ये रंगीन गलियां ।
निभाते रहे वफ़ाएं उनसे, वो रहे करते रहे चालाकियाँ,
किस्से बेवफाई के उनकी, सुना जाती हैं ये खामोशियाँ ।
आँखें नम न हों कभी उनकी ,
ना की कभी ऐसी ये गुस्ताखियां ।
टूट कर प्यार में किसी बेदर्द के ,
बयाँ करती हैं अब आंखें मेरी ये खामोशियाँ ।।