मेरी दादी की सीखें
मेरी दादी की सीखें
ये जो रिश्ते हैं दिल की नजर से सजते हैं
हर जन्म तुम से मिलने कर लिया वादा
अब नहीं होता जुदा तेरी अदा पर फ़िदा
ख़ूबसूरत लम्हों की
जिंदगी को पंख लगे
यादों में याद आया
जिंदगी वे लम्हें
मधुर स्मृतियों की
शैशव की अलबम में
मेहरबान हुआ दादी जी के रूप में
ईश का प्यार, ममता दुलार
नहीं किया कभी दादी ने लैंगिक भेदभाव
गले लगाती अपनी औलाद को
फुर्सत में दादी ले जाती थी
सभी बच्चों को
खुले आकाश के तले
प्रकृति के सान्निध्य में
खूबसूरत बगीचे में
सुनाती विविध कहानियाँ
कविता, गीत से
घुमाती हमें परियों के नगर
खेत, खलियानों पर
बिल्ली, भालू, बंदर का खेल
मुन्नू की साइकिल से सरपट दौड़े
बचपन कैसा थिरक रहा था
और कुत्ता को मोनू रोटी खिलाती थी
खेल देख मनोरंजन करते थे
दादी अपने पोता - पोती से कहती थी
रहना हमको हर हाल में खुश
रोना, दुखी न होना
आपस में रहना मिलजुलकर
बाँधे रखना रिश्तों में प्रेम की डोर
प्रतिकूल को अनुकूल बनाना
फूल बन के गुणों की खूबसूरती से
धरा, जग को बच्चों तुम सब महकाना
दादी की सीखें
आयी ताउम्र काम
कविता, कहानी सुन, पढ़के
मिला मुझे अभव्यक्ति का रचना संसार
लिखी मैंने दस किताबें
देश - विदेश, समाज, कॉलिज, स्कूल
स्टोरी मिरर से
इन किताबों, कलम ने जोड़ दिया।
