मेरी भावना
मेरी भावना
जिन्दगी में तमाशा
बनते आए हम
आंसुओं के समंदर में
डूबते आए हम।
कोई लूट गयी
हमें मोहब्बत के नाम पर
हर मोड़ पर बदनाम होते आए हम।
चाहत की चाह ने
वो सिला दिया
तेरे आँसू को भी
मोती बनाते आए हम।
कम उम्र की तेरी
जज्बात थे हम
वफा पर तेरी
मिटते आए हम।
तेरे ख्यालों को
क्या कहना
जो तेरी सखियों से
सुनते आए हम।
तेरी बड़ी सी
आँखों में
दरिया की छाँव में
डूब कर भी
न डूबने का
बहाने बनाते आए हम।
तेरे चाँद से मुखड़े पर
तिल जो आकर बैठा है
उस तिल को
तेरा दिल
समझते आए हम।
आँखें चार होते ही.
जो तू मुस्कान बिखेरती है
उसी मुस्कान को
जिन्दगी बनाते आए हम।
हंसकर नजरें छुपाना
नजरें छुपाकर
कुछ शर्माना
सखियों को कानों में
कुछ कह जाना
इसी अदा पर
तो फिदा होते आए हैं हम।
✍️निरंजन कुमार मुंना
.