STORYMIRROR

Diksha Gupta

Abstract Tragedy

4  

Diksha Gupta

Abstract Tragedy

मेरी बगिया का फूल

मेरी बगिया का फूल

1 min
427

मेरी बगिया का वो एक फूल

जिसे कोई पा नहीं सकता।

तेरी खुशबू को मैं ढूंढूँ

जिसे अब कोई ला नहीं सकता।

कहाँ होता है ऐसा जिसमें

काँटे ही नहीं होते,

था रंग इतना सुन्दर की

सभी देखें मगन हो के

मगर उस रात जो मैं होता

उसे कोई छिन नहीं सकता।

कहाँ मिलती है वो खुशबू

जो सारे बाग़ में महके,

वो फूल तो था मेरा

मगर उसे चाहें सभी अपने हो के,

प्यार और मतलब में फ़र्क होता है

बड़े कह गए,

मगर जो ये वो जान पाती तो,

उसे कोई बेसहारा छोड़ नहीं सकता।

कहाँ थी उसकी ख्वाहिशें ऐसी

जिन्हें कोई पूरी ना करता।

अपनी किताबों में छुपा के रखता,

उसकी ख़ुशबू को ज़िंदगी भर यूँ ही बनाए रखता,

मगर उसका कतरा कतरा निचोड़ता है कोई।

कोई अच्छा इतना तो बुरा हो नहीं सकता,

मगर जो ये मुझे पहले पता होता

तो मेरी गोद में आज भी वो खिला होता।

मेरी बगिया का वो एक फूल

जिसे कोई पा नहीं सकता।

तेरी खुशबू को मैं ढूंढूँ

जिसे कोई ला नहीं सकता।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract