शांत है मेरी कलम...
शांत है मेरी कलम...
सुना था बिना अनुभव
सत्य प्रत्यक्ष नही होता,
जब तक दिल में दर्द न हो
भवनाएँ कागज़ पर नही उतरती|
इस मन की पीर कम नही
न जाने क्यों,
फिर भी पन्ने कोरे हैं अभी|
शांत है मेरी कलम
न जाने क्यूँ,
कितना कुछ हो रहा है
मगर ये चुप है,
गुमनाम है इस अकेलेपन में भी,
मन लिखना चाहता है
मगर ये ख़ामोश है|
स्याही सूखने का तो बहाना है
शायद अभी और परिपक्वता ज़रूरी है|
भाव झूठ नही हैं, मगर
मेरी और मेरी कलम की मित्रता
शायद अभी अधूरी है।