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Diksha Gupta

Others

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Diksha Gupta

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हम बस हारे नही

हम बस हारे नही

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हम किसी रंगमंच के

कलाकार नही,

पर उसके कई रंगीन चहरों

का बोझ उठाते आ रहे हैं।

हम किसी सवान की पुकार नही,

किसी पीड़ित की गुहार नही,

पर पतझड़ के हर अंत

को जीते जा रहे हैं,

हम वसंत की कोई मंद

बहार तो नही,

पर तूफ़ान के हर विनाश

को अपने हाथों से बटोरते आ रहे हैं,

किसी चेहरे की हम

मुस्कान नही,

पर सबके आँसुओं की वजह

हँसकर बनते जा रहे हैं

हमारी ज़िंदगी की कोई ख़ुशी नही,

पर सबके दर्द को

अपने नाम किए जा रहे हैं

हम किसी की मोहब्बत नही,

पर हर की नफ़रत को,

चुपचाप सहे जा रहे हैं

हमे रास्तों के पत्थर ही सही

पर खुश हैं,

तुम्हे तुम्हारी मंज़िल दिए जा रहे हैं

हमारी रातें लंबी हुई तो क्या

डर नही,

तुम्हारी हर सुबह

लाखों सूरज से रोशन किए जा रहे हैं|

हमसे सब दूर हुए तो क्या

पर सबको तुम्हारे साथ,

तुम्हारे पास किए जा रहे हैं|

हम जा रहे हैं

पर ग़म नही,

अपनी जगह तुम्हे

इनाम दिए जा रहे हैं

याद रखना

हम बस हारे नही,

इस बार भी,

तुम्हे जीत देकर जा रहे हैं।



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