तू आज का अभिमान है
तू आज का अभिमान है
न शोर है, न होड़ है
ये मन बड़ा अशांत है
विराग है, विलाप है,
ये व्यर्थ का प्र्लाभ है।
उठा खड्ग, तू ढाल बन
तू शक्ति का प्रमाण है
तू आज का अभिमान है।
क्यूँ रात काली आ गई,
क्यू ढल गया ये दिन भला,
ये व्यर्थ की पुकार है
ये आम चक्र-काल है।
उठा दीया, तू ले मशाल
तू ज्योति का बिंदुमान है
तू आज का अभिमान है।
क्यूँ दर्द है यहाँ, जहां
क्यूँ रोग से तड़प रहा
क्यूँ मर्म है मिला नही
क्यूँ नमक रगड़ता गया
ये व्यर्थ की गुहार है,
क्यूँ रह गया था तू वहाँ?
ये असली सवाल है।
भूल दर्द स्वयं का
तू जग का विचार कर,
विश्वास कर, आभास कर,
हर मर्म के तू समान है
तू आज का अभिमान है।
क्यों मंज़िलें कहीं नही,
हर रास्ते बेनाम है
हर सफ़र बिन मुक़ाम क्यों
हमसफ़र से अनजान क्यों,
ये राग तो तेरा नही
कहीं विराग तुझसा नही,
हो खड़ा, तू लक्ष्य भेद
तू अर्जुन का कमान है
तू आज का अभिमान है।
क्यूँ कर्म ही धर्म है
क्यूँ पाप-पुण्य अधर्म है
जो जन्म है, तो मृत्यु क्यूँ
क्यूँ जीवन एक चक्रव्यूह
त्याग शोक, त्याग मोह
एक अभिमन्यु तुझमे विधमान है
तू आज का अभिमान है।
क्यों क्रोध है, क्यों रोष है
क्यों हर तरफ़ कोहराम है
क्यों युद्ध है, संग्राम है
बस कटार की डंकार है
ये है तो तेरा दिया
फिर क्यूँ ये विलाप है
जो छल कपट में था रमा
आज उसी का ये श्राप है
उठा कदम तू सत्य पर
असत्य-द्वेष त्याग दे
तेरा भी एक इमान है
तू आज का अभिमान है।
तू पर्वत सा अचल रहे
नदियों सा प्रवाहमय
स्थिरता सागर से ले
और वायु सा विहार कर
तू काल है, त्रिकाल है
अब व्यर्थ के ये सवाल है
संकोच दोष त्याग दे
बिन मोह बलिदान दे।
तू आस है, प्रयास है
हर सृजन की तू आवाज़ है
उठा खड्ग, तू नीव बन
तू नवीनता की एक पहचान है
तू आज का अभिमान है।