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Diksha Gupta

Fantasy Inspirational Others

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Diksha Gupta

Fantasy Inspirational Others

एक भीनी सी हँसी...

एक भीनी सी हँसी...

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एक भीनी सी हँसी जो चली आई है

कहीं से होंठों पे मेरे,

देखने वाले हैरान है।

मैं ख़ुद भी सोचता हूँ,

उससे पूछता हूँ।

ये उसका आम रास्ता तो नहीं,

न तेरे जैसों का बसेरा है।

इस विरान मकान में उलझने रहती हैं

ऐसे में फिर कैसे तू यहाँ से यूँ गुज़रती है।

बंद खिड़की-दरों के सहरे में सजे

ये अरमां कहीं दूर अंदर जा बसे हैं।

ज़िन्दगी दुल्हन बनी बाहर

अंतर-मन से द्वंद्व कर रही है।

बंदूकें-ए-शहनाई की धुन पर टूटे हौसले

सूखे पत्तों से रास्तों पर पड़े हैं।

यहाँ हर साँस में एक चीख़ दबी रहती है

ऐसे में फिर कैसे तू यहाँ से यूँ गुज़रती है।

हमारे हाले-ए-दिल का क्या है

हम तो अपने ही दर्द-ए-लेख लिखा करते हैं

यहाँ कोने में छुपे बैठे

ख़ुद को बार बार गिरते देखते है।

यहाँ कोई गुलिस्तां नहीं दिखते,

न जाने कितनी नाकामयाबियों के ऊँचे ताड़ खड़े हैं।

टूटे मनोबल के आशाओं पर बंधन पड़े हैं

ऐसे में फिर कैसे तू यहाँ से यूँ गुज़रती है।

मैं अब तक बस पूछता था,

जो अब सोचता हूँ,

तो जाना हूँ

कि ये कहानी मुझसे ही शुरू है।

कमरे में छोटी सी उम्मीद अभी भी पड़ी है

नन्हे बच्चे सी खुदती-फांदती

जो बाहर निकली है,

सभी निराशाओं पर चढ़ी मिली है

आख़िर ज़िंदगी जब लड़ती है,

तो ही तो जिंदा-दिली निखरती है।

जो गिरते हैं, वो दस क़दम तो चलते हैं

बस बैठे हुए मंज़िलों को कहाँ समझते हैं।

दीवारों पर ये रंग तजुरबों के हैं

आख़िर युद्ध वीर ही तो लड़ते हैं।

इस हवा में बदलाव की महक है,

नई सूरत की ये बस एक झलक है

ऐसी फिज़ा जब चलती है

तो नदियों की धारा भी बदलती है।

बस कुछ ही हुआ

समंदर में ज़िंदगी-ए-हक़ीकत का कंकड़ पड़ा,

भावनाओं की तरंगों में शंका-ए-रेत बह गई।

उम्मीद की लहरों से, जो नया हुआ

फिर यूँ एक भीनी सी हँसी

मेरे होंठों पे आ बसी है।।



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