ये वक़्त सबका होता है
ये वक़्त सबका होता है
ये वक़्त इंतहान का है,
या ये वक़्त का इंतहान है।
कभी-कभी जो थोड़ी रहमत से बख्शता है,
कहीं कोई उसके फ़ैसले पे नज़र तो नही रखता है?
उस बार जो मेरी आँखों में आँसू आए थे,
क्या ऐसा हो सकता है कि वो मेरे ना हो?
उस वक़्त किसी की वक़्त से रुसवाई थी
कहते हैं वक़्त का कोई साथी नही होता,
इसमें अगर थोड़ी-सी भी सच्चाई थी,
और ये वक़्त के आँखों की नमी थी
जो मेरी आँखों में उभर आयी थी
तो बताओ यारों
अपने यार से यारी निभाने में कैसी बुराई थी?
उस घड़ी को भी ज़रा याद करो,
जिस पल मेरी खुशियों संग सगाई थी,
पेट में उठा दर्द, दोस्तों के ह्सगुल्लों की मेहरबानी, और
पैरों में आई थकान , रात-भर अपनों संग नाच के बुलाई थी।
उस जशन-ए-बारात से वक़्त कब गुज़रा,
क्या किसी को ख़बर आई थी?
मेरे रुख़ पर ठहरी रही वो मुस्कान,
उस अच्छे वक़्त की रचाई थी।
तो बताओ यारों
ऐसे वक़्त को भुला देना कहाँ की बड़ाई थी?
कैसे कह दे, कि ये वक़्त किसी का नहीं होता,
क्या हमने इस वक़्त से यारी निभाई थी?
जब वो था बैठा पास मेरे,
तो क्या हमने सुनी और समझी,
जो कुछ भी उसने सिखाई थी
अब जो रूठा है, तो उसकी क़ीमत समझ आई है।
कि क्या ख़ूब का गुरु है ये, जिसके हर सबक में ज़िंदगी समाई थी
बस समझना भर है मरतबा उसका, फिर देखना
वक़्त संग ये यारी क्या हसीन रंग लाएगी।
सदा ये इल्म हो,
वक़्त सा ना यार होगा, ना उस जैसी यारी
एक बेहतरीन ज़िंदगानी के लिए
बस निभानी होगी, इसमें अपनी थोड़ी सी हिस्सेदारी।
जो कभी उलझो कहीं, तो साथ चल रहे वक़्त को सुनना,
लड़ना पड़े तन्हाई से अगर,
तो कहीं दूर बैठी खुशियों की यादों को संग ले लेना।
बस दोस्त इतना काफ़ी है,
ख़ुदा के बनाए इस जहान में सब दिलकश होगा
और ये वक़्त , जिसका कोई नहीं
ये सबका होगा।।
