मेरी आज़ादी का रुआब!
मेरी आज़ादी का रुआब!
दौर को चंद बातों से लाँघने की बिसात
खुद मे धूल और चिंगारी समेटे वो किताब
बंद हाथो की मुट्ठी मे वो ख्वाब
आ छीन मुझसे मेरी आज़ादी का रुआब !
मेरे दिल की लौ से चिढती जो ये रात
मारा गया जो नहीं चला खूनी कारवाँ के साथ
कारवाँ से अलग अपने आशिएं
में है एक जिंदा लाश
तेरा निज़ाम नहीं फ़ब्ता उसे, ओ नवाब
आ छीन मुझसे मेरी आज़ादी का रुआब !
जंग तुझसे नहीं तेरे खयालो से है
बात मेरे ज़हन मे जलते सवालो से है
गलत होकर भी सही ठहराये गये जवाबो से है
जिनके पीछे रहकर तू राज करता उन हिजाबो से है
अपने लोगों की झुकी आँखों में झाँक उनमें
ज़ालिम तेरा अक्स नहीं
दिखेगा तुझे मेरी आज़ादी का रुआब !
शुक्रिया भी अदा करना है तेरा
तेरे कायदों की कैद ने ही
सिखाया असल जेहाद
तेरी बंदिशें नाकाफी रहीं
मेरी आँखें तो कब से खुला
आसमाँ देख रहीं
कभी इस आसमाँ के नीचे
हटेगा तेरा संगदिल नकाब
तब फुर्सत मे देखना
मेरी आज़ादी का रुआब !
तेरे फ़रेबों से बड़ा
फितरत से बुजदिल सदा
हर मौसम मे मनहूस खड़ा
तेरी हर बुराई पर भारी पड़ा
बड़ा ढीठ है यह मेरी आज़ादी का रुआब !
