मेरे गुरु मैं तुम पर खत्म तुम्ही से शुरू
मेरे गुरु मैं तुम पर खत्म तुम्ही से शुरू
मन की अवहेलना
कोई ख़्वाब अधूरा छूट गया
एक पल में मन भी टूट गया
जो अज्ञात हूँ कुछ दिनों से मैं...
मैं मूक हूँ कोई कारण है।
दरवाज़ों के मुँडेर पर...
कोई चिंतन करता बैठा है।
कोई व्यस्त ग्रस्त है जीवन मे
कोई भावहीन हो बैठा है।
जो अज्ञात हूँ कुछ दिनों से मैं...
मैं मूक हूँ कोई कारण है।
वो गगन जो प्रेरणा था कभी
अब चुभती है उड़ान भी तो
अब पेड़ो की उस हलचल में
तूफान है फिर भी शांत है जो
जो अज्ञात हूँ कुछ दिनों से मैं...
मैं मूक हूँ कोई कारण है।
कल की झमाझम बारिश में
मन डूब गया गहन चिंतन में
मन का डूबा कैसे लौटे...
कोई खैर खबर कैसे पूछे...
अब है वही पर वह है नहीं
सब कुछ तो है...
पर सब कुछ नहीं...
जो अज्ञात हूँ कुछ दिनों से मैं...
मैं मूक हूँ कोई कारण है।