मेरे गाँव की एक अनोखी बात
मेरे गाँव की एक अनोखी बात
वो गांव की सोंधी मिट्टी वो पानी कुए का मीठा सा
खेतों में फसलों की हरियाली और पेड़ों पर कोयल की मीठी बोली
चूल्हा मिट्टी का आंगन में और माँ के हाथ की चटनी सिल की
जब भी सोचूँ बीते दिनों की इक तस्वीर सी इन आँखों में खिच सी जाती है।
वो कच्चे मिट्टी के घर आँगन जिन में सपने सजते थे
उन छोटे छोटे घरों में जाने कितने बड़े बड़े किरदार रहते थे
वो गाँव का घर छोटा मेरा बड़े दिल बालों का आशियाना था
चाहें जो आ जाये हर कोई उसमें फिट हो जाता था...!!
मुझको छत कच्ची अपने गाँव के घर की यादें ताजा करती है
गर्मी में तपती छतों पर हम जब रात को लेटा करते थे
पानी की बौछारों से उसको ठंडा करते थे
तब.लगा के बिस्तर तान के चादर क्या खूब रात को मिलकर गपशप करते थे।
वो ठंडी हवा की बौछारें और आकाश भरा तारों का था
उस पर नानी दादी और बुआ की वह मीठी प्यारी सी बातें
मन को ना जाने कितने ही नए ख्वाब दिखलाती थी
और आवाज़े तोता मैना की कानों में रस घोला करती थी...!!
मेरे गांव की एक अनोखी बात, सब मिल जुल कर रहते थे
घर छोटे थे लेकिन फिर भी हर किसी के दिल में प्रेम का दरिया बहता था
घर का हो या फिर बाहर वाला दिलों में सभी के लिए स्नेह और नम्रता झलकती थी
खुशियां सबकी और गम भी सबके कुछ ऐसे मिलकर जीते थे....!
