मेरे चाँद हो तुम
मेरे चाँद हो तुम
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सुनो क्यूँ कहती हूँ
मैं तुम्हे अपना चाँद
जब तुम होते हो साथ मेरे
तब रात जैसे पूरनमासी
की रात होती है।
वो रात चांदनी होती है
अपने पूरे शबाब पर ठीक
वैसे ही धड़कनें चलती है
मेरी अपनी तीव्रतम गति पर
जब तुम होते हो साथ मेरे।
मन तो जैसे हिरण की तरह
कुलाचें मारने लगता है
दिल को जैसे बरसो की
मांगी कोई मुराद मिल जाती है।
मेरे हाथों में तुम्हारा हाथ
मेरी सांसों में मिलती
तुम्हारी सांसें होती है
होठों की मुस्कुराहटें भी।
जैसे अतिक्रमण करने को
आतुर हो हाँठो से फ़ैल कर
गालों तक कब्ज़ा कर लेती है
इसलिए कहती हूँ मैं
तुम्हें अपना चाँद !