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Suraj Kumar Sahu

Abstract

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Suraj Kumar Sahu

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मेरे भगवान और मैं

मेरे भगवान और मैं

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भगवान हर समस्या का निदान करता है, 

ये इंसान मन हैं इंसान को परेशान करता है, 

जो चले भरोसे उसके वो करता पार नैया, 

ऐसे थोड़े कोई किसी का गुनगान करता है। 


सहारा छीन ले या सहारा दे दे किसी को, 

मझधार में डूबा या किनारा दे दे किसी को, 

मांगने से भी मिलता है कोई मांगे दिल से, 

बिन मांगे कभी बहुत सारा दे दे किसी को। 


किसे कितना मिलना सब उसके हाथ में, 

किसे कैसे हैं पलना सब उसके हाथ में, 

हैरान हूँ हर कुछ वह जान जो लेता है, 

मुझे किस रंग में ढलना सब उसके हाथ में। 


मुसीबत में साथ उसका बहुत प्यारा होता, 

जब कोई नहीं अपना तब वह हमारा होता, 

जिसने जाना करीब से जाकर उसका ग्यान,

उसके लिए उसका भक्त आँख का तारा होता। 


सब कुछ वो मेरा मैं समर्पित हूँ उसको, 

जिस रूप में चाहिए अर्पित हूँ उसको, 

जो भी हूँ मैं आज सब उसकी ही कृपा, 

यकिन हैं यही कारण गर्वित हूँ उसको।


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