मेरे अधूरे सपने
मेरे अधूरे सपने
जी लेने दो मुझे मेरे सपने
न बांधो मेरे लड़कपन को
क्यूँ इतना मुझे झुकाते हो
मेरे ख़्वाबों को नतमस्तक कराते हो
मैं भी इंसान बन धरती पर आयी हूँ
क्यूँ देवी बना,हक़ से वंचित करवाते हो
सम्मान से जीने की लोलुप्सा अंदर रहती
फिर भी आत्मसम्मान को चीर चले जाते हो
सपने होते बिना परों के फिर भी उड़ने को मचलते
क्या बताएँ इन्हें कि कैसे ये सीने में धधकते
कोई इनको समझने वाला नहीं आता
बस सहानुभूति देने से काम कहाँ चल जाता
जीने दो मेरे अपने खूबसूरत सपनों को भी
जो मेरी ज़िन्दगी जीने में अहम हैं
दे दो उन्हें भी मोहलत चंद लम्हों की
यही ज़िन्दगी में रंग भर,हमेशा के लिए यादें छोड़ जाते!