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Aishani Aishani

Romance

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Aishani Aishani

Romance

मेरे आँसुओं के दो बूँद..!

मेरे आँसुओं के दो बूँद..!

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तुम, नदी और

मैं नहीं जानती तैरना। 

मैं नहीं कर सकती

कोई दुस्साहस

कि मैं जानती हूँ... 

डूब जाऊँगी। 

किन्तु

आखिरी साँस तक

मैं देखना चाहती हूँ... 

तुम्हारी पावन तीर पर

खड़ी होकर

तुम्हें दो कूलों के मध्य

सीमाबद्ध मगर उन्मुक्त

बहते हुए। 

ऐ नदी..! 

ये गुनाह तो नहीं..? 

मेरे शब्द

जो कभी अटपटे

कभी जानदार होते हैं

हवाओं में समाकर

तुम्हें स्पर्श कर

हवा के संग

मुझ तक लौट आते हैं

उन लौटती हवाओं में

तुम्हारी उपस्थिति

शीतलता के रूप में

महसूस करती हूँ। 

सच मानो, 

तुम्हें सांसों में

समेट लेत

ी हूँ। 

ये गुनाह तो नहीं..? 

तुम और मैं

अपनी- अपनी सीमा में

उन्मुक्त इस तरह 

कि

हर सलीका व सुलूक

हमें देख अचंभित। 

हम ख़ुद में कैद नहीं, 

तुम

उद्गम से गंतव्य तक

स्नेह सुधारस से जगती को

आप्लावित करती गतिमान

और

मैं... 

मैं तुम्हारे तीर से

तुम्हें जगती के कल्याणार्थ

प्रवाहित होते

विस्मय से अपलक

देखती रहती हूँ। 

कभी सोचा है तुमने... 

क्यों दर्द होता है, 

तुमसे जब कभी मैं

दूर जाती हूँ...? 

ढूँढ सको तो

ढूंढना, 

तुम्हारी अशेष

जलराशि में

मेरे आँसुओं के

दो बूँद। 



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