मेरा शहर
मेरा शहर
सूरज की सुरमयी लाली लिए
ये लहरों की बस्ती ,
है हवा में घुली सांसें कुछ नवीन सी
ये खुशबुओं की मस्ती ,
खिलौनों सी कश्ती यूँ गोते खाते हुए,
हिचकोलों की चादर का आवरण हटाते हुए
कुछ यूँ अपनी मंज़िल की ऒर जाए
जैसे किसी जवाक की माँ गोदी में ले ज़िन्दगी की लोरी सुनाएं ,
सुकून से रूठा में बैठा तेरी पलको पर
इन परिंदो की आवारगी मुझे खूब भाये,
पर अब लाली से अंधेरो की और बढ़ते उस क्षितिज पर तुझे पुकारता में
डरता हूँ की अब कहीं तुझसे प्यार ना हो जाए ,
की फिर एक बार मेरी आवाज़ मेरे महबूब तक ना पहुँच पाए
या तू मुझे भूल ना जाए ,
काश कुछ ऐसा हो जाए
ये ख्वाब हकीकत हो जाए ,
भले कुछ पलों को ही सही ,
मेरी भी ज़िंदगी में रंगो की बौछारें आएं ,
मुझे भी जीने में कुछ मज़ा आये ,
की तेरा मेरा रिश्ता कुछ यूँ बन जाएँ
में तेरी गोद में बस जाऊं
और तू मेरे दिल में समाये ,
में तेरे दिल का एक कोना हो जाऊं
और तू मेरी गोते खाती कश्ती का साहिल हो जाये .

