मेरा प्यार शालीमार
मेरा प्यार शालीमार
उसे बस एक कहानी कहूँ सिर्फ ये काफ़ी नहीं
मैं उसके बिना अधूरा हूँ
ये मेरी सोच के दायरे है
और वो हर दायरे से आगे कहीं
एक अलग दुनिया में बसती है
वो पायल कँगना चूड़ियों में नहीं रहती
वो अपनी आवाज़ में ही खनक रखती है
वो पाबन्द नहीं है वक़्त की
वक्त को पाबन्द रखती है
मैं उसके इल्म की इन्तहा नहीं जानता
वो जुगराफ़िया, फ़लसफ़ा, साइंस, रियाज़ी सब जानती है
रखती है कुछ भी कर गुज़रने के सब इरादे
वो सिर्फ चेहरे ही नहीं पढ़ सकती
वो आँखों में लिखी इबारत भी जानती है
वो साथ हो
कोई बात हो
उसका नज़रिया अलग होता है
जैसे फूलों के बीच फूल कमल होता है
फूल का खुशबू से जो नाता है
मेरा उसका ऐसा रिश्ता है
मैं अगर धूप समझ लूँ ख़ुद को
उसे तुम बरगद की छाँव समझ लेना
मैं सुर हूँ अगर
उसे तुम ताल समझ लेना
वो दूसरे के दुख को भी अपना समझती है
और खुशियों को बाँटकर ख़ुश होती है
जो मिलता है उसको और उससे बाते कर लेता है
बार बार मिलने की उस पे हसरत हावी रहती है
वो मेरी हथेलियों में बने चाँद से ज़्यादा सुन्दर है
वो सबसे अलग सबसे जुदा है
जहाँ तलक में उसको जान सका हूँ
वो मेरे मिज़ाज का ही अक्स है
ये गुरूर होना मुझे लाज़िमी है
वो मेरी है और मेरे लिए ही बनी है।