शातिर मिज़ाज का मालिक दोज़ख में भी जगह न है पाता शातिर मिज़ाज का मालिक दोज़ख में भी जगह न है पाता
मैं ऐसे तिलिस्म की अपने दिल में कोई जगह नहीं रखती, मैं ऐसे तिलिस्म की अपने दिल में कोई जगह नहीं रखती,
टूटा है दिल बेशक़ पर आवाज़ नहीं है।। टूटा है दिल बेशक़ पर आवाज़ नहीं है।।