मेरा पत्र ईश्वर के नाम
मेरा पत्र ईश्वर के नाम
है ईश्वर,
तू सर्वव्यापी सर्व शक्तिमान,
तेरी सर्वस्व से मैं तुच्छ वाकिफ नहीं,
मेरा एक पत्र तुझे मिला होगा,
मैं बहुत डरा
बहुत घबराया सा था,
जब मैंने तुम्हें पत्र लिखा
क्यों कि मेरी हैसियत नहीं
कि मैं तुझसे सवाल पूछूं,
मैं तेरी बनाई इस सृष्टि का
एक तुच्छ बूंद मात्र हूं,
जिसका स्वयं में कोई अस्तित्व नहीं,
जो सदैव तेरे आगे
याचक बनकर रहता है,
तुझसे इस कष्ट रूपी संसार
में खुद को बचाने की
गुहार लगाता रहता है,
ये संसार काम, क्रोध, लोभ, मोह और
और जिसमे अंहकार रूपी बादल छाए रहते हैं,
और मैं लालसा से ग्रस्त तुच्छ
प्राणी इनमें सदैव डूबा रहता हूं,
इंसान रूप में मैं
अपने कर्मों के वश में नहीं रहता हूं,
मुझे सदबुद्धि दे
कि मैं अपने विचारों को
सही अर्थों में साबित कर सकूं,
उनका अपने जीवन में
सार्थक प्रयोग कर सकूं,
मैं तो सदैव स्वार्थवश में रहता हूं,
अपने हितों में दूसरों को अनदेखा करता हूं,
मुझमें अनेक विकार हैं
जो मुझे अंदर ही अंदर खाए जाते हैं
मुझे मुझसे ही दूर किए जाते हैं,
मैं मोहमाया में फंसता चला जाता हूं,
कर्मों के भंवर में धंसता जाता हूं,
मुझे तुझसे बहुत शिकायतें हैं,
तू सब जानता है
मेरी हर परेशानी को पहचानता है,
मेरे दुर्गुणों से तू अच्छी तरह वाकिफ है,
पर फिर भी तू मुझे रोकता नहीं,
गलत काम करने से टोकता नहीं,
बस मुस्कराता रहता है
मुझे देख कर भी एक जैसा रहता है,
कभी बिन मांगे तू सब देता है
पर जब जरूरत हो मुझे तेरी
तू आंख मूंद लेता है,
मैं इस भ्रम में जीता हूं
कि तू रोकेगा मुझे,
मेरी हरकतों पर टोकेगा मुझे,
पर तू निष्ठुर बना रहता है
करता कुछ नहीं,
ये पत्र बहुत दुःखी मन से लिखा है तुझे
हो सके तो जवाब जरूर देना,
मेरी वेदना का हर हिसाब जरूर देना,
मैं तेरे दिए इस जीवन के
आखिरी पड़ाव तक इंतजार करूंगा,
तेरे पत्र की प्रतीक्षा में उम्रभर रहूंगा।