मेरा मत
मेरा मत
मेरा मत, मेरा अधिकार
तो गाया सभी ने
पर क्या अधिकारों संग कर्तव्य
निभाया सभी ने ?
या व्यक्तिगत स्वार्थ की
आंखों पर डाल पट्टी
लगा दिया ठप्पा नहीं चाह नहीं रहा
नई सोच जानकर,
या फिर इसकी कीमत थी
क्या यह बिकाऊ ही तो है
यह मानकर,
एक-एक वोट जुड़कर
लाख फिर करोड़ होते,
इन्हीं वोटरों के दरमियां
देश के सपने सोते हैं।
उन साकार स्वप्नों को जगाया किसी ने,
या बस ठप्पा लगाने का
फर्ज निभाया सभी नेl
अधिकार तुम्हारा... देश ?
राह तुम्हारी, मंजिल ?
इन बिखरे सवालों को उठाया किसी ने,
मेरा मत मेरा अधिकार
बताया सभी ने।