मेरा मन
मेरा मन
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किसको मैं अपना
दुःख दिखलाऊँ।
दूसरों के दुख को
कब तक अपनाऊँ।
कठपुतलियां बनके
कब तक नृत्य करूँ ?
ख्याल करूं दूसरों का
अपने मन का ना करूं ?
मन हो गया अब
मेरा भी खंडहर।
बिखरे उसमें कई
कंकड़ व पत्थर।
चाहा था कभी
किसी की प्रीत बनूं।
प्रीत बनकर मैं
उसकी मीत बनूं।
किस्मत का लिखा
पर मैं टालूं कैसे ?
अपना ये अकेलापन
किसी को दिखाऊं कैसे ?