मेरा मेहबूब चाँद...
मेरा मेहबूब चाँद...
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मेरा मेहबूब चाँद मुझे खूब सताता है,
रात भर बादलों में छुपता छुपाता है।
पल पल उसके दीदार को तरसता हूँ,
कभी इधर से कभी उधर से आता है।
रात भर उससे दिल की बात करता हूँ,
अपने दिल की कुछ भी नहीं बताता है।
बुत की तरह खड़ा रहता है सामने मेरे,
मुझे कभी सीने से भी नहीं लगाता है।
बुलाता हूँ गर मोहब्बत से पास अपने,
हुस्न पर अपने इठलाकर दिखाता है।
कभी ओढ़ लेता है पूरा दुपट्टा सिर पर,
कोई अपने मेहबूब से इतना शर्माता है।
जागता रहता हूँ रात भर देखकर उसे,
वो मुझे एक लोरी तक ना सुनाता है।
कितना पत्थर दिल है रे तू ए बैरी चाँद,
तुझे मुझ पर बिल्कुल तरस ना आता है।