हर तरफ खालीपन
हर तरफ खालीपन
पिरो-पिरो के रिश्तों की दुनिया
मन जाने खाली सा क्यों लगता है
लगी है भीड़ तमाशबीनों की
शहर अब खाली सा क्यों लगता है
लफ्ज़ गुम हो गए हैं ना जाने कहाँ
एतबार थककर कहीं सो गया हैं
उम्मीद जिंदा है उजाला दिखेगा कहीं
पर हर घर सूना सा क्यों लगता है
गुमसुम मेरी दहलीज़ के परिंदे
मैं भी परेशान और पशेमान
बदस्तूर कोशिश है ज़मीर न मरे
दिल का प्याला खाली सा क्यों लगता है
शिद्दत खो चुकी है तस्सवुर अपना
अदावत के परचम लहरा रहे हैं
कंधे जो हुआ करते थे सहारा अपना
हौसला उनका खाली सा क्यों लगता है
अर्श से फर्श तक आंधी चली है
जो थे मेहरबान, गुनाहगार हो गए हैं
हर ख्वाब टूटा फिर बिखर गया
मोहब्बत का घड़ा खाली सा क्यों लगता है....