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Ankita Sanghi

Drama

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Ankita Sanghi

Drama

मेरा जन्म स्थान

मेरा जन्म स्थान

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आज फिर याद आया मुझे गाँव मेरा

जन्म लिया जहाँ वहीं दिल है मेरा।


वो कच्ची गलियां, वो कच्चे मकान

मिट्टी के चूल्हे पे बनते थे जहां पकवान।


एक थाल में मिल बैठ सब भाई बहन खाते थे

माँ की बनाई रोटी प्रेम से चट कर जाते थे।


पिज़्ज़ा बर्गर नूडल्स अब सब मिलते है यहाँ

फिर भी वो तृप्ति अब मिलती है कहाँ।


बाबूजी ने घर में चलाई थी ऐसी परम्परा

नित उठ प्रणाम कर सबको, करो काम दूसरा।


मात-पिता के चरणों में है स्वर्ग, सिखाई यही संस्कृति

उन्ही चरणों को देखने को अब, है आँखे तरस्ती।


बड़ों का आदर हो, छोटों को हो प्यार

माँ बाबूजी ने दिए हमें ऐसे धन्य संस्कार।


कमाई की चाह में आ गया हूँ घर से दूर

अब चाह के भी लौट न सकूं, हूँ मैं मजबूर।


धन दौलत सब दिया इस शहर ने मुझे

पर बदले में छीन लिए सब अटूट रिश्ते।


उम्मीद है एक दिन वापस मैं जाऊंगा

उस मिट्टी की खुशबू में फिर मैं खो जाऊंगा।


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