तूफानी बारिश
तूफानी बारिश
तुमने आज फिर वही दोहरा दिया,
एक पल में अपनी से पराया कर दिया,
छोटी सी एक नोकझोंक को लेकर
सब रिश्तों को ही तज़ दिया ?
आज फिर यकीं तुमने दिला दिया,
नहीं है हक़ मुझे कुछ कहने का तुमसे,
पल में तुमने ये निष्कर्ष निकाल लिया
प्रेम नहीं मुझे इस घर से ?
चार वर्ष बीती बात फिर आज चलाई,
कब की भूली वो तूफानी रात याद दिलायी,
कहा था कभी न खुलेगा ये किस्सा पुराना
पर फिर तुमने आज वोही बात उठायी ?
कहे या अनकहे, हमेशा मैं ही क्यों सब समझूँ,
तुम्हारी हर अपेक्षा पर मैं ही क्यों खरी उतरूं,
नाराज़ होने का भी न दिया अधिकार
बस चले जाने को कहते हो, जो अगर मैं कुछ कह दूँ ?
ख़ैर, लगता है ईश्वर का भी है यही फैसला,
शायद इसीलिए आज फिर वैसे ही बरसा,
जाते जाते है रब से एक प्रार्थना यही
मिले न तुम्हें कभी फिर हमसफ़र मुझसा।
