रिश्ता
रिश्ता


आज कुछ ऐसा अजीब हुआ,
मेरा अतीत मेरे सामने आ खड़ा हुआ।
अब तक थे जो गम दिल में दबाये,
आज वो जख़्म फिर हरे हो गये।
सजाये थे मैंने भी सपने हज़ार,
तेरे संग जीने की थी चाह अपार।
पर बदल दिया था मैंने भी वो रास्ता,
जब कहा था तुमने
अब तेरा मेरा न कोई वास्ता।
जिस घर गली को गए थे बरसों पहले छोड़,
आज कैसे आ गए हो फिर इस मोड़।
बड़ी मुश्किल से था इस दिल को समझाया,
सौ मिन्नतें कर मैंने था मन को मनाया।
अब क्यों आये हो लौट के तुम यहाँ,
चले जाओ वापस तुम्हारे जहाँ।
मान लिया था मैंने, तू भी ये समझ ले,
नहीं होता है कुछ उस रब की इच्छा के परे।
शायद नहीं है लिखा तेरा मेरा साथ निभाना,
है गुज़ारिश,
भूल जा तू भी अब ये रिश्ता पुराना।