STORYMIRROR

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

4  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

मेरा ग़म

मेरा ग़म

1 min
270

याद है तुझे या भूल गया है,

तेरी दुनिया कोई छोड़ गया है..

उस घराने में कोई अपना था ही नहीं,

जिस घराने को हमने भुलाया ही नहीं...

हम मजबूर हुए फिर नई दुनिया बनाने में,

भूल गए वो ज़ब गैरों को अपना बनाने में..

नया साल बदला है,

नजर का हिसाब नहीं,

बहुत कुछ बदला है,

मोहब्बत का नाम नहीं..

गैरों की बाहों में मतलब की दुनिया बनाई है,

तू और तेरा जमीऱ खोखले दिल की गवाही है...

याद आता है वो पीपल का पेड़ और वो घरौंदा,

जहाँ जिंदगी थी और कोई अपना खिलौना...


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy