मेरा देश
मेरा देश
मुझको भाता है मेरा देश,
तरह-तरह के यहाँ हैं वेश।
बदल रहा मेरा परिवेश,
कभी न हो मेरे देश में क्लेश।
प्रेम की धारा बहती रहे,
इकदूजे से ये कहती रहे-
मन में न रखना कभी भी मैल,
नित दिन हो मेरे देश में चहल।
गंगा-यमुना की निर्मल धार,
कभी न करेंगे हम किसी पर वार।
न जीवन में हिम्मत हार,
ईष्र्या-द्वेष का मैल उतार।
अंत में कहती हूँ मन की बात,
वीरों जगाओ अपने जज़्बात।
बदल डालो बुरे हालात,
न ही करो कभी भी वारदात।
दीजिए मेरी बात पर ध्यान,
सदा करो बड़ों का सम्मान।
न कीजिए किसी का भी अपमान,
बनाए रखिए अपनी आन-बान और शान।
नेक कर्मों से ही बनेंगे महान,
तभी तो होगा मेरे देश का गुणगाान।