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‘पुस्तक ज्ञान’

‘पुस्तक ज्ञान’

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नित दिन पुस्तक पढ़ना,

मेरे मन को भाता है।

जीवन में कुछ बन जाऊँ,

मेरा मन ललचाता है।


अक्षर-ज्ञान ही दुनिया में,

विद्वान हमें बनाते हैं।

यह गुण हो जिसमें,

महान वही कहलाते हैं।


आप भी सुन लो मेरी बात,

हर दिन रखना इसको याद।

पुस्तक ज्ञान है सच्चा ज्ञान,

इसलिए हमेशा देना ध्यान।


कक्षा में बढ़ेगी हमारी भी शान,

मत करना कभी अभिमान।

अपनी काबलियत अब तू जान,

ज्ञान से ही जीत ले सारा जहान।


नित दिन कहती है मेरी माँ,

बेटा जगा ले पढ़ने की चाह।

आलस्य को दूर भगा,

ज्ञान की ज्योत खुद में जगा।


विद्या कभी नहीं देती दगा,

जीवन में न डगमगा।

सच्ची व सही राह पकड़कर,

निरंतर आगे बढ़ता जा।


मैंने भी ये बात मानी,

कुछ कर दिखाने की ठानी।

नहीं करूँगा अब शैतानी,

‘पढ़ना’ ही मेरी ज़िंदगानी।



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