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DR. Richa Sharma

Drama Tragedy

5.0  

DR. Richa Sharma

Drama Tragedy

वर्तमान परिवार

वर्तमान परिवार

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जहाँ होते हैं चारों ओर से शब्दों के वार,

मेरी नज़र में वो ही कहलाता है परिवार।


कोई किसी को देखकर राजी नहीं,

मुख से कभी हाँजी नहीं।


इकदूजे से न ही करते कोई बात,

इस तरह गुज़र रहे हैं अब दिन और रात।


किसी के सुख-दुख से नहीं है कोई वास्ता,

हर कोई काटता अपना रास्ता।


अकेले ही मना लेते हैं हर त्योहार,

क्योंकि केवल नाम का ही,

रह गया है अब तो परिवार।


एक-दूसरे से मिलने का,

हाल-चाल पूछने का,

नहीं है समय किसी के पास।।


अपनी ही मस्ती में रहने लगे हैं और,

अंजान ही बन बैठे हैं अब तो खास।


प्यार के मीठे दो बोल,

कानों को लगने लगे हैं बकवास,

उफ़ ! ये कैसा अहसास।


नित दिन होता है केवल ये प्रयास,

आखिर अपनों की ही,

कैसे उड़ाया जाए परिहास।


समझ नहीं आता,

अपनों का ही मज़ाक बनाकर,

कौन-सी कामयाबी ले रहे हैं लोग ?


स्वयं स्वार्थी बनकर इस जग में कर रहे हैं,

केवल अपनों का ही उपयोग।


मैं तो केवल यही चाहती हूँ,

कैसे भी हो पारिवारिक सदस्य,

न हों उनमें कभी मतभेद।


आपस में प्रेम बना रहे,

कभी न खुले किसी के भी आगे,

परिवार का कोई भी भेद।।


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