मेरा आशियाँ
मेरा आशियाँ


इट पत्थर से कहाँ घर बनता है एक गृहिणी का,
मैं यकीन की धरा,भरोसे की नींव, ओर अहसासों की नमी चुनूँ,
दीर्घ द्रष्टि के रोशनदान, दिलदारी के दरवाजे लगा लूँ,
दीवारों में धैर्य की सीमेंट ओर छत अपने प्यार से बुनूँ.!
आला दर्जे की सामग्री चुनकर मैं मकान को मंदिर करूँ.!
साथी हो सोनार सा जिसे फ़ख़्र हो अपनी शुद्धता पर खरे सोने सा,
उसकी हथेलियों पर बाँध लूँ आशियाना अपने अरमानों का.!
मेरे घर की बालकनी के कोने में एक मजबूत बाँहो के
हूक पर
झूला टाँग दूँ अपने वजूद का,
ओर दोहराती जाऊँ नग्में ज़िंदगी के सुरीले,
प्यार के रंग और अपनेपन की ठुमरी की उमंग लिए.!
खिड़कीयों की दरारों में भर दूँ सिलीकोन परवाह की,
जलन की सीलन और इर्ष्या के धुएँ को जो मात दे.!
परत चढ़ा लूँ कुछ अहसास की घर के रोम-रोम पर दर्द की दीमक छू न पाए.!
जूही, गुलाब, मोगरे की किलकारियां गूँजे उर आँगन की चौखट पे ममता के दीप सजे.!
सरताज का साथ लिए संस्कारों की वेदी पर प्यार की आहुति दूँ,
"ज़िंदगी को यज्ञ कहूँ"