मेहनती किसान
मेहनती किसान
देख कृषक परिश्रम अथाह
ईश्वर ने नीर बहाया
खून पसीने से उसने
बंजर भू अन्न उगाया।
श्रम देख कर्मशील सुत का
मातृभू हृदय रहम आया
कर स्वीकार प्यार उसका
उसका दोगुना लौटाया।
कोषद्वार दिये खोल धरा ने
कृषक मन हर्षाया
लहलहाती फसल देख वो
स्वप्न लोक हो आया।
परिश्रम की चाबी से तो
हर ताला खुलता जाये
प्रहरी हों लाख द्वार चाहे
कृष्णलीला सा उन्हें सुलाए।
कर्मशील ने श्रम से अपने
हम सबको अन्न खिलाया
हुई दुर्भाग्यवश फसल नष्ट जो
क्यों कर्ज ने उन्हें सताया।
कौन सजा दी प्रभु ये तुमने
वो रोते रोते चिल्लाया
होकर लाचार परिस्थितिवश
उसने मौत को गले लगाया।
विनती तुमसे है प्रभु ये
इसको, तुम स्वीकार करो
जो भरता है पेट सभी का
उसपर कृपा अपार करो।
राह चुने ना मृत्यु की कभी वो
फसल खेत भरमार करो
जो करता मेहनत पूरी
उसके सभी भण्डार भरो।
उसके सभी भण्डार भरो।।