मौत की खुशबू
मौत की खुशबू
प्रकृति ने ओर इक बारदहाड़ लगायीं है....!
विकराल रूप लेकर,
मौत की खुशबू पवन में फिर से छायीं है।
न अस्पताल में जगह है,
न शमशान में जगह है....!
सब तेरा ही तो किया धराया है,
तूँ ही तो इस महामारी की वजह है।
तेरी औकात तुझे क्यों
समझ में नहीं आती है ये इंसान....!
कभी तूँ माटी पर तो, कभी माटी तेरे ऊपर,
बस इतनी सी तो है तेरी पहचान।
किस बात का अलंकार
तुझ पर छाया है....!
दौलत, शोहरत ये तो
एक तेरे मन की मोह माया है।
बोल अपने तूँ अनमोल रख
यहीं तो जीवन की सच्ची कमाई है....!
प्राणी मात्र पर दया करना सीख ले
इसी में तेरी भलाई है।