मौसम नौबहार का
मौसम नौबहार का
याद फिर तुम्हारी लेकर आ गया, ये मौसम नौबाहर का,
कब तक ये दूरियाँ, क्या कोई अंत नहीं इस इंतजार का,
तुम्हारा कहना तो आसान था कि भूल जाओ पर ये मन,
उलझता तुम्हारी ही यादों में, क्या करूँ दिल के तार का,
तुम संग ही जोड़ लिया नाता, कोई और राह नहीं जाना,
तुम्हारी ही आस में जी रही हूँ, वरना मोह नहीं संसार का,
क्या मजबूरी थी तुम्हारी जो इस कदर छोड़कर चले गए,
क्या हमारे नसीब में ऐसा ही था अंजाम, हमारे प्यार का,
भंवरे गा रहे, हर कली मुस्कुरा रही, धरा ने बदला रूप है,
पर तुम जो साथ नहीं तो कोई मतलब नहीं इस बहार का,
मंद-मंद बहती ये बयार और भी बढ़ा रही है विरह वेदना,
तुम्हारा एहसास ऐसा है चहूँ ओर जैसे पुष्प हरसिंगार का,
यही एहसास लिए, मैं समझाती हूँ हर बार, इस दिल को,
काश! तुम साथ हो जब आए अगला मौसम नौबहार का।